Tuesday, June 14, 2011

तुम ... ?

मेरा आज है तू , आने वाला कल भी

साया भी है मेरा तू ,मेरी रौशनी भी

मौजें भी , गहराई भी , दरिया भी, समंदर भी

आँखों की है चमक भी, शब्मन भी उदासी की

पायल का घुँघरू भी है, लाली भी माथे की

राग भी, डफली भी, साज भी, ख़ामोशी भी, तरन्नुम भी, आवाज भी

बेकरारी भी है, सुकून भी

दोहा है, पाई भी, अलंकार भी

गर्व है और राज़ भी

राह है, हमराह भी, मंजिल भी है, पड़ाव भी

सपना है, अपना है, खैरियत भी, खैर ख्वाह भी

मेरा अफसाना भी है तू ही,

तन्हाई भी, महफ़िल भी

है याद् रात की पहली झपकी, सुबह की पहली अंगड़ाई भी

मैं कौन हूँ तेरा मुझे पता नहीं, क्या नाम दूं तुज्हे के मुझे कुछ जचा नहीं

अब तू ही दे बता तो बेकरारियों का सार हो

एक नाम बने मेरा, कुछ तो आकार हो

बस एक बार कह दो मैं हूँ जो वो तुम्ही हो

बस इतना और कहना है साथ मेरे रहना

क्युकी मुक्ति भी तुम ही हो, हो तुम ही प्यास भी

... शेखर