Sunday, November 4, 2007

मेरी यह कहानी ....

मेरी यह कहानी तुम क्या करोगे सुन कर
बिखरे हुए पड़े इस शीशे के टुकड़े चुन कर

शायद नहीं मिलेंगे मेरे निशान वहाँ तक
जो सोच कर चला था जाना था जिस जहाँ तक

याद भी मुझको नहीं अब तो वो धुंधली डगर
आती थी मुझको लेकर जो तेरे यहाँ तक

एक राह के सिरे से एक राह नयी जुड़कर
लाती गयी मुझे इस मोड़ तक यहाँ तक

वो दरख्त अब तक शायद वहीं खडा है
जिस पर कभी लिखा था नाम मैंने तेरा
पर मार मौसमों की वो कब तलक सहेगा

पर मार मौसमों की वो कब तलक सहेगा
जब रूह मर चुकी है तो जिस्म क्या चलेगा.

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