Wednesday, May 7, 2008

तुम मेरे जीवन की बरखा

तुम मेरे जीवन की बरखा, या सर्द सुबह की पहली धूप
इन आंखों में अक्स है तेरा, या मेरे सपनों का रूप

एकटक मुझको देखा करती इन आंखों के मोती
कितने सुंदर हो जाते है, इन् होठों से आते शब्द कैसे

तुम मेरा सपना हो सुंदर, जीवन गाथा का सच्चा मीत
तुम्ही तो हो मेरी कहानी, मेरी तृष्णा मेरी जीत

जब तुम मेरी ओर देखकर मुस्काते हो
या मेरी बातें सुन,चुप हो जाते हो
करते हो या जीभ चिड़ाकर कुछ शैतानी
बिन बोले ही तुम कितना कुछ कह जाते हो

बिना तुम्हारे बस लगता है हर वक्त अधूरा
और मैं पूरा हो जाता हूँ , जब मेरी बाहों में तुम आते हो
या मेरे कंधे पर सर रख कर सो जाते हो

हर लम्हा हाथ थामने को दिल तरसा
मेरे जीवन मरुस्थल की तुम बरखा

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